पञ्चप्राण

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तलको श्लोकमा पञ्चप्राणको निरूपण गरिएको छ ।

प्राणापानव्यानोदानसमाना भवत्यसौ प्राणः ।
स्वयमेव वृत्तिभेदाद्विकृतेर्भेदात्सुवर्णसलिलादिवत् ।।९७।।

विकार–भेदका कारण सुन र जललाई भिन्न मानिन्छ । यसरी नै प्राण, स्वयं पनि वृत्ति–भेदका कारणले प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान नामले चिनिन्छ । ।।९७।।

जसरी वृत्ति–भेदका कारणले अन्तःकरणलाई मन, बुद्धि, अहंकार र चित्तमा बाँडिएको छ । त्यस्तै, एकतङ्खव प्राण शरीरका पाँच स्थानमा रहेर पाँच प्रकारका कार्यहरू गर्ने हुनाले यिनीहरूमा वृत्ति–भेदका कारण प्राण, अपान, व्यान, उदान र समान नामले चिनिन्छन् । ‘उदान वायु’ कण्ठमा स्थित रही वाणीको कार्य गर्दछ । ‘प्राण वायु’ कण्ठ र नाभीमा रही श्वासप्रश्वासको कार्य गर्दछ । ‘अपान वायु’ गुह्यद्वारको मध्यमा रही मलमुत्र निष्काशनको कार्य गर्दछ । ‘समान वायु’ नाभीको केन्द्रमा रही प्राण वायु र अपान वायुलाई सन्तुलन गर्दछ । ‘व्यान वायु’ सम्पूर्ण देहमा व्याप्त रही रक्त सञ्चालन गर्दछ ।

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